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पुराने समय से जब सूर्य उपासना होती थी उसमे लोगो की श्रद्धा और विश्वास का समन्वय था, वो अब भी चला आ रहा है ...
पहले सूर्य पूजा को सिर्फ़ एक धार्मिक अनुष्ठान माना जाता था। पर अब इसे वैज्ञानिक पुष्टि मिलती जा रही है , और अब यह चिकित्सा पद्धति के रूप मे अग्रसर हो रहा है।
एक गलत अवधारणा के अनुसार ऐसा माना जाता है कि इससे हानि होने की सम्भावना है जैसे कि कई तरह के कई चर्म
रोग हो जाते हैं पर सही तरीके से इसका सेवन करें तो बस फायदे ही फायदे हैं.. और यह तो हम सब जानते हैं कि "अति सर्वत्र वर्जयेत " ।
ध्यान रहे की सुर्य चिकित्सा दिखता तो आसान है पर विशेषज्ञ से सलाह लिये बिना ना ही शुरू करें।
जैसा की हम जानते हैं कि सूर्य की रोशनी में सात रंग
शामिल हैं .. और इन सब रंगो के अपने अपने गुण और लाभ है ...
1. लाल रंग ... यह ज्वार, दमा, खाँसी, मलेरिया, सर्दी, ज़ुकाम, सिर दर्द और पेट के विकार आदि में लाभ कारक है
2. हरा रंग .... यह स्नायुरोग, नाडी संस्थान के रोग, लिवर के रोग, श्वास रोग आदि को दूर करने में सहायक है
3. पीला रंग ...... चोट ,घाव रक्तस्राव, उच्च रक्तचाप, दिल के रोग, अतिसार आदि में फ़ायदा करता है
4. नीला रंग.....दाह, अपच, मधुमेह आदि में लाभकारी है
5. बैंगनी रंग.... श्वास रोग, सर्दी, खाँसी, मिर् गी ..दाँतो के रोग में सहायक है
6. नारंगी रंग... वात रोग . अम्लपित्त, अनिद्रा, कान के रोग दूर करता है
7. आसमानी रंग... स्नायु रोग, यौनरोग, सरदर्द, सर्दी- जुकाम आदि में सहायक है
सुरज का प्रकाश रोगी के कपड़ो और कमरे के रंग के साथ मिलकर रोगी को प्रभावित करता है।
अतः दैनिक जीवन मे हम अपने जरूरत के अनुसार अपने परिवेश एवम् कपड़ो के रंग इत्यादि मे फेरबदल करके बहुत सारे फायदे उठा सकते हैं।
हमे जिस रंग की ज़रूरत हो हम उसका इस्तेमाल करके अपने रोग दूर कर सकते हैं ।
सुर्य चिकित्सा मे पानी, कृस्टल, सुर्य स्नान, सुर्य प्राणायाम, इत्यादि तरीके अपनाये जाते हैं, जो रोगी की बिमारी, एवम् द्शा देखकर निर्धारित किया जाता है।
सुर्य नमस्कार योग तो अपने आपमे समपन्न योग है, इससे मिलने वाले लाभ से कोई भी अनभिज्ञ नही है। अब तो सुर्य मंत्रो को और सुबह जल-अर्घ्य को भी महत्वता मिलती जा रही है।
जलार्पण के लिये भी निर्दिष्ट नियम हैं, और इसका पालन करके हम कई तरह के समस्याओ से निजात भी पा सकते हैं।
इस तरह हम कह सकते हैं कि आज के दौर मे सुर्य चिकित्सा हमारे जीवन ले हरेक पहलू मे कारगर है, शायद इसी कारण से हमारे पुर्वजो ने सुर्य उपासना पर बल दिया था, ताकि हम रोज ही खुद को सुख समृद्धि के दिशा मे अग्रसित हो।
- रंजना
अच्छी जानकारी, शुक्रिया!!
ReplyDeleteपूरा ब्लगवै उर्जा से दमक रहा है.
ReplyDeleteशीर्षक में 'सूर्या' की जगह 'सूर्य' करना चाहिये।
ReplyDeleteउमदा जानकारी.
ReplyDeletebhut ache jankrey ap da rha ha thx
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