आज ३० सितम्बर को जीवनऊर्जा के द्वारा १०००वें प्रश्न का समाधान दिया गया। वो भी तब जब जीवनऊर्जा पर नए पोस्ट नहीं डाले जा रहे हैं, मैं समझती हूं कि यह अपने आपमें जीवनऊर्जा के लिए बड़ी उपलब्धि है। जीवनऊर्जा यानि कि आप, मैं और वह हरेक व्यक्ति जो ऊर्जान्वित जीवन जीने की तमन्ना रखता है। आप सबको जीवनऊर्जा की तरफ से ढ़ेरो बधाई।

हम आपके प्रश्नों को पाकर एवम उनके समाधान की कोशिश कर अत्यंत प्रसन्न हो रहे हैं। आगे भी ये सिलसिला यूंही बना रहेगा। आप मुझे avgroup@gmail.com पर अपने सवाल यूंही भेजते रहें और जीवनऊर्जा से अपना स्नेह बनाएं रखें।

हमें यह बताते हुए भी हर्ष हो रहा है कि अब कुछ दिनो से हनी मनी नामक प्रत्रिका में भी जीवनऊर्जा के लेख नियमित रूप से हर महीने आने लगे हैं। उस पत्रिका के पाठको का स्नेह भी जीवनऊर्जा को वैसा ही मिल रहा है जैसा आपने दिया। ..... तहेदिल से शुक्रिया

November 21, 2008

गॄध्रसी रोग ( सीयाटिका)

इसमे विशिष्ट प्रकार की पीडा सिफ़क प्रदेश(Gluteal region ) से प्रारम्भ होकर क्रमश: कटि के पिछले भाग , ऊरु, जानु, पिण्डिलोयों, तथा पैरो तक आती है। या शुद्ध वतिक और वात कफ़ज भी होती है।
इस रोग मे आसन बहुत ही उपयोगी होते है ,
दश्मुल के क्वाथ मे एरण्ड क तैल डालकर पीने से भी इसमे फ़यादा होता है।
महायोगराज गुग्ग्ल २५० मि. ग्रा. शुद्ध शिलाजीत ५०० मि ग्रा. तथा अश्वगन्धा चुर्ण २ ग्रा. सुबह शाम दश्मुल क्वाथ के साथ लगातार ले तथा एरण्ड तैल का उपयोग भी लाभदायक रहता है
गृधसि के लिये लाभदयक आसन मै अगले लेख मे बताउंगा ।
अधिक जानकारी के लिये आप मुझे मेल भी कर सकते है : jiva_ayurveda@yahoo.com

1 comment:

  1. उपयोगी जानकारी, आभार।

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